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गोम॑दू॒ षु णा॑स॒त्याश्वा॑वद्यातमश्विना। व॒र्त्ती रु॑द्रा नृ॒पाय्य॑म् ॥८१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

गोम॒दिति॒ गोऽम॑त्। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। सु। ना॒स॒त्या॒। अश्वा॑वत्। अश्व॑व॒दिति॒ अश्व॑ऽवत्। या॒त॒म्। अ॒श्वि॒ना॒। व॒र्त्तिः। रु॒द्रा॒। नृ॒पाय्य॒मिति॑ नृ॒ऽपाय्य॑म् ॥८१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:81


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वानों के विषय में पशु आदिकों से पालना विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (नासत्या) सत्य व्यवहार से युक्त (रुद्रा) दुष्टों को रोदन करानेहारे (अश्विना) विद्या से बढ़े हुए लोगो तुम जैसे (गोमत्) गौ जिसमें विद्यमान उस (वर्त्तिः) वर्त्तमान मार्ग (उ) और (अश्वावत्) उत्तम घोड़ों से युक्त (नृपाय्यम्) मनुष्यों के मान को (सुयातम्) अच्छे प्रकार प्राप्त होओ, वैसे हम लोग भी प्राप्त होवें ॥८१ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। गाय, घोड़ा, हाथी आदि पालन किये पशुओं से अपनी और दूसरे की मनुष्यों को पालना करनी चाहिये ॥८१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्विषये पश्वादिभिः पालनाविषयमाह ॥

अन्वय:

(गोमत्) गावो विद्यन्ते यस्मिंस्तत् (उ) वितर्के (सु) (नासत्या) सत्यव्यवहारयुक्तौ (अश्वावत्) प्रशस्ततुरङ्गयुक्तम्। अत्र मन्त्रे सोमाश्वेन्द्रिय० [अष्टा०६.३.१३१] इति दीर्घः (यातम्) प्राप्नुतम् (अश्विना) विद्यावृद्धौ (वर्त्तिः) वर्त्तमानं मार्गम् (रुद्रा) दुष्टानां रोदयितारौ (नृपाय्यम्) नृणां पाय्यं मानम् ॥८१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे नासत्या रुद्राश्विना यथा युवां गोमद्वर्त्तिरु अश्वावन्नृपाय्यं सुयातम्, तथा वयमपि प्राप्नुयाम ॥८१ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। गोऽश्वहस्तिप्रभृतिभिः पालितैः पशुभिः स्वकीयमन्यदीयं च पालनं मनुष्यैः कार्य्यम् ॥८१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. गाय, घोडा, हत्ती इत्यादी पाळीव पशूंद्वारे आपले व इतरांचे पालन केले पाहिजे.